शाम........

शाम थी आयी और फरियाद की 
कहा रोज़ आती हु ! 
निहारते हो शाम थी आयी और फरियाद की कहा रोज़ आती हु,  क्या नई बात लगी , 
क्यो मुस्कुराते हो, डूबता है सूरज ? 
क्यो भाता है अंधेरा ? 
जवाव आसान से थे 
फिर भी शांत रहा, 
पर मन कहा चुप रहा 
जो मेहनत से बड़े वो चमकता है
धमंड मे चूर तो है डूबता
प्रेम का न न कोई छोर है , 
पानी और पपीहा जैसे
मेरा मोह है, 



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