Equality - the World Law
बात तब की है जब अपनी कक्षा ख्तम होने पर मे दो बजे अपनी संस्कृत की कक्षा जा रहा था तभी दो बच्चे (12-13 साल के होंगे कचरा उठाते हुए और स्कूल की बाते करते सुना, मैने बात की तब उन्होंने बताया की दिनभर कचरा इकट्ठा करके जो रूपये मिलते है उनसे खाना मिलता, वही दुसरी और कुछ हंश के जोड़े जो बैठे थे खाना से खेल रहे थे । मुझे किसी को नैतिक शिक्षा नहीं देनी, जिनके बच्चे वो जाने , जिनकी जिन्दगी वो देखें उन्हे रास पसंद है करे,
भारत मे 1 करोड़ 80 लाख ऐसे बच्चे होंगे जो ऐसे ही बिना घर के है, न इनकी जाति है न कोई पहचान अब , तो अब क्या किया जाए
इन जैसे बिना घर बालों को आरक्षण दिया जाय या जो घर मे रहकर लाल नीले कपड़े पहनकर रोड़ और बस जला रहे है।
आरक्षण का इतिहास बड़ा मजेदार है ये है जनता को एक तरफ जाति प्रमाण पत्र मांगती है दुसरी तरफ संविधान की समानता का ढोल बजाती है।
सरकार को बस भारतीय नागरिक है ये देखना चाहिए और दूसरा उसकी आर्थिक स्थिति कार्ड जिससे बह आरक्षण के दायरे मे है या नही पता चल सके।
जो आज बेरोजगार दिवस मना रहे वो भी कम चोर नहीं है कभी भी इस बात पर नहीं करेंगे न ये कहेंगे की" ये रोड़ के बच्चे ज्यादा हकदार है " न की हम
मे एक सामजिक सेवक के रूप मे इन बच्चों को पड़ाने के लिए छोटी class को चालू करने बाला हु। पर धन्दे बाले coaching center को ये नहीं दिखता आज बड़ी हुंकार भर रहे।
सच बात कहु तो मे बस उनके लिए समर्थन और आरक्षण की मांग करूँगा जिनके पास घर नहीं। यही #समानता है यही #अविनाशवाद है
देश को जरूरत है
एक कानून की ,
देश को जरूरत है
Department of Orphan child की
जो ऐसे बच्चो को हॉस्टल और स्कूल्स दे न की जाति के आधार पे
यह मानवता बादी सोच है, राजनीति का रंग बिल्कुल न दे।
लेखक हु बस सच लिखने दे
धन्यवाद!
'उनसे पूछो जिनके घर नहीं
तुम TV देख गर्रा्त्
©अविनाश पाठक
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