कर्म - एक पहचान

समुंदरों से शांत ,ज्वाला सा गर्म हूं|
हे मानस तेरे हाथ का वो कर्म हूं ||
सोचने से तुझको तेरा रास्ता मिल जाएगा|
आगे तुझको  तेरा कर्म ही ले जाएगा|

कुरान की कलमा ,गीता का मर्म हूं
हे मानस तेरे हाथ का  मैं मैं कर्म हूं|

ढूंढ रहा है तू जिसको दुनिया जहानों में
बो सुख छुपा है ,कर्म के मैदानों में

स्वर्ग और नरक यही मिल जाएगा,
कर्म का फल जब तु पाएगा |

मानस का इमान करने वाला वह धर्म हूं
ए मानस तेरे हाथ का  वह कर्म हूं......

कर्म से ही राम ,रावण बन जाएगा
कर्म से ही तुझको तेरा रास्ता मिल जाएगा
  कर्महीन को जग में कौन पूछता है?
कर्म के  बिना तो तू सांस भी ना लेता है.

  पृथ्वी पर जन्मे हर मानव का धर्म हूं
ए मानस तेरे हाथ का मैं  वह कर्म हूं


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